क्यूं फिक्रमंद रहूं सोच के बारे में तेरे
तुझको को मांगा है खुदा से जो मुसव्विर है तेरा,
बे फ़िक्ररी से जिए जा रहे थे हर चीज़ तो थी मेरे पास
घर से भी आज़ाद था नह बन्दिश थी न कोई पूछ ताछ
दोस्त यार घूमना फिरना
मस्ती से दिन गुजर भी रहे थे
और उनसे बातें भी रोज़ हो ही जाती थीं
कभी कभार मुलाकात का भी कुछ न कुछ बहाना मिल ही जाता था
मुझे कितना अज़ीज़ था वह
कभी सोचा नहीं था उसके बग़ैर भी जीना पड़ेगा
मगर वक़्त बदला हालात बदले फिर एक वह दिन भी आया जो हमें जुदा कर गया
हम न चाहते हुए भी एक दूसरे से दूर हो गऐ
ज़िन्दगी ने हमें ऐसे मक़ाम पर ला खड़ा किया कि हम मजबूर हो गए
और फिर दूर हो गऐ
आज भी मेरे राबते से बाहर नहीं हैं वह,
पहले भी था तअल्क़ मगर दूर दूर से
अब आती खबर है उनकी कुछ और दूर से,
खैर हमारे हालात बदले जीने के ढंग बदले नऐ लोग हमारी ज़िन्दगीयों में आए
और हम खुश भी हैं वफादार भी हैं
नऐ जुड़ने वाले तमाम लोगों से
मगर दिल के किसी गोशे में कहीं न कहीं वह ज़रूर है
कहीं न कहीं वह बाक़ी ज़रूर है मुझ में
कुछ वजह तो है जो इतना गुरूर है मुझ में
अना परस्त हो तुम
बड़े मगरूर हो तुम
तुम्हें जरा फ़िक्र नहीं
तुम मुस्तकबिल से इतने ला प्रवाह क्यों कर हो
अक्सर वह यही बातें करते थे
और तब मेरे पास सिर्फ यही होता था कहने को
और यही मैं कहता था,
क्यूं फिक्रमंद रहूं सोच के बारे में तेरे
तुझको मांगा है खुदा से जो मुसव्विर है तेरा
Nazish azmi,,,
तुझको को मांगा है खुदा से जो मुसव्विर है तेरा,
बे फ़िक्ररी से जिए जा रहे थे हर चीज़ तो थी मेरे पास
घर से भी आज़ाद था नह बन्दिश थी न कोई पूछ ताछ
दोस्त यार घूमना फिरना
मस्ती से दिन गुजर भी रहे थे
और उनसे बातें भी रोज़ हो ही जाती थीं
कभी कभार मुलाकात का भी कुछ न कुछ बहाना मिल ही जाता था
मुझे कितना अज़ीज़ था वह
कभी सोचा नहीं था उसके बग़ैर भी जीना पड़ेगा
मगर वक़्त बदला हालात बदले फिर एक वह दिन भी आया जो हमें जुदा कर गया
हम न चाहते हुए भी एक दूसरे से दूर हो गऐ
ज़िन्दगी ने हमें ऐसे मक़ाम पर ला खड़ा किया कि हम मजबूर हो गए
और फिर दूर हो गऐ
आज भी मेरे राबते से बाहर नहीं हैं वह,
पहले भी था तअल्क़ मगर दूर दूर से
अब आती खबर है उनकी कुछ और दूर से,
खैर हमारे हालात बदले जीने के ढंग बदले नऐ लोग हमारी ज़िन्दगीयों में आए
और हम खुश भी हैं वफादार भी हैं
नऐ जुड़ने वाले तमाम लोगों से
मगर दिल के किसी गोशे में कहीं न कहीं वह ज़रूर है
कहीं न कहीं वह बाक़ी ज़रूर है मुझ में
कुछ वजह तो है जो इतना गुरूर है मुझ में
अना परस्त हो तुम
बड़े मगरूर हो तुम
तुम्हें जरा फ़िक्र नहीं
तुम मुस्तकबिल से इतने ला प्रवाह क्यों कर हो
अक्सर वह यही बातें करते थे
और तब मेरे पास सिर्फ यही होता था कहने को
और यही मैं कहता था,
क्यूं फिक्रमंद रहूं सोच के बारे में तेरे
तुझको मांगा है खुदा से जो मुसव्विर है तेरा
Nazish azmi,,,
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