बड़ा बे चैन है दिल
न जाने केया हुआ इसको
तन्हा भी नही है
तन्हाई भी बड़ी है
एहसास तो बाक़ी है
पर कुछ महसूस नहीं होता
अजीब सी कैफियत है कहीं खो जाना चाहता है
कहीं दूर
कहीं बहुत दूर
कहीं डूब जाना चाहता है
कहीं खो जाना चाहता है
इस बे डंन्गी ज़िन्दगी से तबीयत ऊब सी गई हो जैसे
मतलबी, मतलब परस्त ,और खुद गरज़ी की
इस रंग भरी
झूठी दुनिया से दूर
बहुत दूर
अलग
सब से अलग
इन सब से दूर
बहुत दूर हो जाना चाहता है
बे चैन बहुत है
दिल परेशां है
ग़मज़दा है
ग़मगीन है
रोज़ मर्रा का जैसे मामूल बन गया है
दिल आज़ारी का बाज़ार गर्म है
वहशत और बरबरियत जड़ पकड़ती जा रही है
इन्सानों का जीना मुहाल है
न खैर की बातें होती हैं
न ही मिलाप की तत्बीरें
अगर कुछ होता है तो बस
नफ़रत नफ़रत और सिर्फ नफ़रत
हर शख्स मशगूल है मसरूफ है
अपने आप को मुत्मइन करने में
अपने आप को झूठे दिलासे देने में
सच्चाई से बे प्रवाह हर चीज़ को नज़रंदाज़ कर रहा है
बस बे वजह की तसल्लीयां
बे माना सी खुशफहमिंयां
नादान दिल बेचैन है
परेशां है खौफ़ ज़दा है
अपने मुस्तकबिल से अपने घर परिवार
अपनी इस दो तरफा ज़िन्दगी से
मक़सद खाली खाली सा
ख़ाब अधूरे
ज़िन्दगी बे माना
न कोई शौक बाक़ी
न ही उम्मीदें कोई
हर शख्स का हाल यही
हर शख्स परेशां
इस मुकम्मल उलझी हुई ज़िन्दगी से निजात के केया रास्ते हैं??
?????
मुझे कुछ ऐसा लगता है कि
हमारे पास इसका सही जवाब तो होता नहीं
तो हम ख़ामाख़ा अपनी मुश्किलें और बढ़ा लेते हैं
अपने आप को उलझा लेते हैं
बे कार के झमेलों में
और आख़िर को
उसका भुगतान भी हम ही को करना पड़ता है,
हालात कितने ही मुश्किल क्यों न हों
हर सूरत हमें अपना ज़ब्त बाक़ी रखना चाहिए
क्यूंकि यह हाल
हमारी ही गलतियों
लापरवाहियों
और बे ख्यालीयों का ही नतीजा होता है
किसी को इल्ज़ाम दे के खुद को बरी करना
बड़ा ही आसान होता है
और हम यही करते हैं
दूसरों को ज़ालिम बनाना
और खुद मज़लूम बन्ना हमारी फितरत बनती जा रही है
और इन्सानी बिरादरी के लिए यह बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं
हमें अपनी गलतियों का इहसास होना चाहिए
सर जोड़ने की जरूरत है
मुहतात रहने की जरूरत है
सबक़ लेने की जरूरत है
अपनी इसलाह की जरूरत है
वक़्त मुकम्मल तब्दील हो चला है
मुल्क व बैरून मुल्क हर तरफ इन्सानियत खतरे में नज़र आती है
इन्सानियत का वजूद अब रुखसत हुवा चाहता है
ऐसे वक़्त में इन्सानी तबीयत का हामिल हर शख्स का दिल
बेचैन है
ग़मज़दा है
ग़मगीन है
परेशां है
पशेमां है,,,
बाज़ चीजें के लिए हमारा दिल राज़ी नहीं होता
मगर हम कर गुजरते हैं
और अब तो आलम यह है हमें पछतावा भी नहीं होता
हम किसी को तकलीफ़ नहीं देना चाहते
मगर हम लोगों के दिल दुखाते हैं
हम सच्चे भी बहुत हैं
बस यही हमारा झूठ है
हम वफ़ादार हैं यह हमें लगता
पर हम बेवफ़ा हैं यह बताएं कैसे
सच को मान लें?
हार मान जाएं?
ज़िद छोड़ दें केया?
हां!!!
हां!!!!!
हां!!!!!!
ज़िद छोड़ दो तुम
बदल जाव तुम
तुम से ही जुड़ी तुम्हारी सारी मुश्किलें हैं
और नह बढ़ावो इनको
बदलो अपने जीने का ढंग
अपना मेआर
अपने तरीके अपना अन्दाज़
और वह सब कुछ जो इन्सानों यह इन्सानियत के खिलाफ हो
मुहब्बत
हमदर्दी
इनकसारी
तड़प
जज़बे
अखूवत
मुरौवत
चाह,,,,
,,, जारी,,
न जाने केया हुआ इसको
तन्हा भी नही है
तन्हाई भी बड़ी है
एहसास तो बाक़ी है
पर कुछ महसूस नहीं होता
अजीब सी कैफियत है कहीं खो जाना चाहता है
कहीं दूर
कहीं बहुत दूर
कहीं डूब जाना चाहता है
कहीं खो जाना चाहता है
इस बे डंन्गी ज़िन्दगी से तबीयत ऊब सी गई हो जैसे
मतलबी, मतलब परस्त ,और खुद गरज़ी की
इस रंग भरी
झूठी दुनिया से दूर
बहुत दूर
अलग
सब से अलग
इन सब से दूर
बहुत दूर हो जाना चाहता है
बे चैन बहुत है
दिल परेशां है
ग़मज़दा है
ग़मगीन है
रोज़ मर्रा का जैसे मामूल बन गया है
दिल आज़ारी का बाज़ार गर्म है
वहशत और बरबरियत जड़ पकड़ती जा रही है
इन्सानों का जीना मुहाल है
न खैर की बातें होती हैं
न ही मिलाप की तत्बीरें
अगर कुछ होता है तो बस
नफ़रत नफ़रत और सिर्फ नफ़रत
हर शख्स मशगूल है मसरूफ है
अपने आप को मुत्मइन करने में
अपने आप को झूठे दिलासे देने में
सच्चाई से बे प्रवाह हर चीज़ को नज़रंदाज़ कर रहा है
बस बे वजह की तसल्लीयां
बे माना सी खुशफहमिंयां
नादान दिल बेचैन है
परेशां है खौफ़ ज़दा है
अपने मुस्तकबिल से अपने घर परिवार
अपनी इस दो तरफा ज़िन्दगी से
मक़सद खाली खाली सा
ख़ाब अधूरे
ज़िन्दगी बे माना
न कोई शौक बाक़ी
न ही उम्मीदें कोई
हर शख्स का हाल यही
हर शख्स परेशां
इस मुकम्मल उलझी हुई ज़िन्दगी से निजात के केया रास्ते हैं??
?????
मुझे कुछ ऐसा लगता है कि
हमारे पास इसका सही जवाब तो होता नहीं
तो हम ख़ामाख़ा अपनी मुश्किलें और बढ़ा लेते हैं
अपने आप को उलझा लेते हैं
बे कार के झमेलों में
और आख़िर को
उसका भुगतान भी हम ही को करना पड़ता है,
हालात कितने ही मुश्किल क्यों न हों
हर सूरत हमें अपना ज़ब्त बाक़ी रखना चाहिए
क्यूंकि यह हाल
हमारी ही गलतियों
लापरवाहियों
और बे ख्यालीयों का ही नतीजा होता है
किसी को इल्ज़ाम दे के खुद को बरी करना
बड़ा ही आसान होता है
और हम यही करते हैं
दूसरों को ज़ालिम बनाना
और खुद मज़लूम बन्ना हमारी फितरत बनती जा रही है
और इन्सानी बिरादरी के लिए यह बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं
हमें अपनी गलतियों का इहसास होना चाहिए
सर जोड़ने की जरूरत है
मुहतात रहने की जरूरत है
सबक़ लेने की जरूरत है
अपनी इसलाह की जरूरत है
वक़्त मुकम्मल तब्दील हो चला है
मुल्क व बैरून मुल्क हर तरफ इन्सानियत खतरे में नज़र आती है
इन्सानियत का वजूद अब रुखसत हुवा चाहता है
ऐसे वक़्त में इन्सानी तबीयत का हामिल हर शख्स का दिल
बेचैन है
ग़मज़दा है
ग़मगीन है
परेशां है
पशेमां है,,,
बाज़ चीजें के लिए हमारा दिल राज़ी नहीं होता
मगर हम कर गुजरते हैं
और अब तो आलम यह है हमें पछतावा भी नहीं होता
हम किसी को तकलीफ़ नहीं देना चाहते
मगर हम लोगों के दिल दुखाते हैं
हम सच्चे भी बहुत हैं
बस यही हमारा झूठ है
हम वफ़ादार हैं यह हमें लगता
पर हम बेवफ़ा हैं यह बताएं कैसे
सच को मान लें?
हार मान जाएं?
ज़िद छोड़ दें केया?
हां!!!
हां!!!!!
हां!!!!!!
ज़िद छोड़ दो तुम
बदल जाव तुम
तुम से ही जुड़ी तुम्हारी सारी मुश्किलें हैं
और नह बढ़ावो इनको
बदलो अपने जीने का ढंग
अपना मेआर
अपने तरीके अपना अन्दाज़
और वह सब कुछ जो इन्सानों यह इन्सानियत के खिलाफ हो
मुहब्बत
हमदर्दी
इनकसारी
तड़प
जज़बे
अखूवत
मुरौवत
चाह,,,,
,,, जारी,,
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