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कैसी गुज़र रही है,,

कैसी गुज़र रही है सभी पूछते तो हैं
कैसे गुज़ारता हूं कोई पूछता नहीं

सब ख़ुश हैं उनकी जीत पे मस्त हैं मगन हैं
मैं ग़मज़दा हूं,हारता हूं कोई पूछता नहीं,,,
by
Nazish azmi

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सिर्फ कुत्तों से डरते हैं,,,,

एक जमाने से बस देखना और सिर्फ देखना अजीब दिन थे वह भी इतनी भी हिम्मत नहीं होती थी कि कुछ अपने बारे में बता सकें बस देखे जा रहे हैं आखिर को वह थक ही गऐ और एक रोज़ सरे राह हाथ पकड़ के अपना नम्बर दे गऐ और कह गए अगर तुम्हारे पास कुछ है मुझ से कहने के लिए तो मुझे फून करना यह कहा और चल दिए उस वक़्त केया मैं ने महसूस किया मैं बयां नहीं कर सकता खैर वह वक़्त भी गुज़र गया अब बातें शुरू हो गईं दिन तमाम रात सारी बातें जारी बस यही चलने लगा फिर महीने दो महीने गुज़रने के बाद अब मुलाकात का नया बाब शुरू हुआ चाहता था एक बात और हमारी फैमिली कुछ ज्यादा ही सख्त है लव के मामले में हां तो बात मुलाकात कि चल रही थी मिलने का वक़्त चार बजे का था बता दूं ए चार सुबह का चार था तक़रीबन एक बजे का वक़्त था जब ए बातें हो रहीं थीं अचानक ख्याल आया जब चार बजे मिलना है तो अभी क्यों नहीं बस फिर क्या था चोरों की तरह दरवाजा खोला और बाहर शहरों के रेहाइशी इलाकों में आम तौर से गलियां सुनसान हो जाती हैं सन्नाटा फ़ैला था चारों तरफ सीधी गली के आखिरी कोने में उनका घर मगर नहीं! बन्दा दीसी और अपना दिमाग ...

रस्सियों का शहर,,

फ़िक्र नई सोच नई  वह नए उनकी ज़िंदगी अछूती सबसे अलग सबसे निराला अंदाज जीने का ढंग नया  खेल कूद अलग उनकी एजूकेशन अलग उनके स्कूल अलग सब अलग सबसे जुदा न कोई शोर शराबा था वहां  न कोई हार्न की तकलीफ़ दह आवाजें नह प्रदूषण  न कोई गाड़ी  न कोई मोटर न ही ट्रेनें  न जहाज़ कोई न तेल का खर्च  न रोड बनाने का कोई झन्झट न कोई एयरपोर्ट न बस स्टैंड न ही कोई स्टेशन कुछ भी तो ऐसा नहीं था वहां पूरा शहर रस्सियों पर डिजाइन किया गया था मैं दंग रह गया यह कैसे मुमकिन है मगर मैं ने देखा लोग रस्सियों पर झूलते हुए एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं बच्चे स्कूल जा रहे हैं  नेता मंत्री रस्सियों पर लटके हुए हैं बारातें आ रही हैं किसी की रस्सी कमजोर है तो किसी की मज़बूत कहीं रेशम की रस्सी है तो कहीं आम धागे की तो कहीं चाइना बर्नाड रस्सियां भी नज़र आयीं बड़े-बड़े रस्सी स्टोर मोल्स और बड़ी बड़ी दुकानें थीं फिल्म स्टार और टीवी एक्टर्स रस्सियों के बर्नाड अम्बैसटर थे वहां की ज़िंदगी ही अजीब थी यह शायद मुझे लग रही थी रस्सियों का निज़ाम हुकूमत के सुपुर्...