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ग़ज़ल,,,,

वैसे तो अपने घर वो बुलाते नहीं कभी
जो हम गए तो कहते हैं, आते नहीं कभी

दिल  टूटने की  कुछ, होती  अगर खबर
अपनी अना को बीच में लाते नहीं कभी

धड़कन है साँस है मेरे दिल का क़रार है
ए सब है तू मगर ए बताते नहीं कभी

रशके क़मर जो साथ में लाते थे चांदनी
अबके बरस वो चाँदनज़र आते नहीं कभी

खामोश हैं खफा हैं कभी डांन्ते हैं वह
अपनी अदा से अब वह लुभाते नहीं कभी

मिटने लगे हैं एकएक जीतने थे सब निशां
हालाँकि दागे ए दिल एए जाते नहीं कभी

वादे वह रस्में कसमें सब और बात हैं
नज़रें भीअब वह हमसेमिलाते नहीं कभी

एक हादसे में जबसे मेरा दिल गया है जल
तब से चराग ए दिल ए जलाते नहीं कभी

नाज़िश ए सोच कर हम होते नहीं खफा
हमको खबर है आप मनाते नहीं कभी

,, by
Nazish azmi,,, 

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