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ख्वाहिश तो बहुत की,,

तुझको पाने कि खाहिश़ तो बहुत की
ज़िद नहीं की पर कोशिश तो बहुत की

अपनी अना को मिन्नतें,मुम्किन कहां ऐ दिल
गुज़ारिश करूं,ए दिल ने गुज़ारिश तो बहुत की,,,,,,

अब नाराज़ बैठा है कि काश़
कुछ मिन्नतें, कुछ इल्तिज़ा
ऐ काश़ कुछ तो करते,

मगर फिर सोचता हूं चलो अच्छा ही हुआ
ज़िन्दगी अच्छी ही है

दिन भी हैं, रातें भी हैं
ख़ुशीयां भी हैं, ग़म भी हैं
पर कहीं न कहीं तो बाक़ी है
तब ही तो ए आवाज़ आती है कि वह होते
तो क्या होता

खैर जो भी होता अब तो वह आने से रहे नहीं,,

बस ज़िद नहीं की
पर कोशिश तो बहुत की
यही सोच कर खुद को समझा लेता हूं
अपने दिल को , अपने आप को
अपने इहसासात को अपने मन को
कि कोशिश तो बहुत की,
मगर सच तो यह है कि ए सब बेकार की बातें थीं
आज लगता है कि सारी खामियां मुझ में ही थीं
बहुत कुछ ऐसा था जो किया जा सकता था
और भी रास्ते थे और भी तरीके थे
ना कामयाब मुहब्बत कामयाब बनाई जा सकती थी
फिर सोचता हूं
तब के हालात ही कुछ और थे,
गुज़ारिश करूं?
मुम्किन कहां ऐ दिल यही कह के खामोश करा देते थे
एटीट्यूड बहुत था ना
अभी भी है
और होना भी चाहिए,
बहरहाल
अपनी अना को मिन्नतें
न क़ुबूल थीं,
न हैं
न होंगी,,,
by
Nazish azmi,,,

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